बस्ती पंचकर्मामागील शास्त्रीय विचार काय आहे ? – Blog – 57

मागील ब्लॉग मध्ये आपण पंचकर्म, त्याचे प्रकार आणि वमन, विरेचन या कर्माबद्दल माहिती घेतली. आणि आजच्या ब्लॉग मध्ये आपण बस्ती चिकित्सा बद्दल माहिती घेणार आहोत.

बस्ती चिकित्सा म्हणजे काय ?

बस्ती चिकित्सा म्हणजे सामान्यपणे एनीमा म्हणजे पोट साफ करणारे औषध असं मानलं जात कारण पोट साफ झालं की बरं वाटतं.

पण तसे नाही आहे .

बस्ती चिकित्सेमागे खूप महत्वपूर्ण शास्त्रीय विचार आहे.

आयुर्वेदाने बस्ती चिकित्सेला “अर्धी चिकित्सा” मानली आहे. म्हणजे एखाद्या रुग्णाला बरं करण्यासाठी बस्ती चिकित्सा दिली तर ५० टक्के गुण फक्त बस्ती चिकित्सेने मिळतो आणि उरलेल्या ५० टक्के गुणासाठी इतर पंचकर्म, औषध, आहार, व्यायाम यांची योजना करावी लागते.

जर आयुर्वेदाने बस्ती चिकित्सेला इतके महत्व दिले आहे तर त्यामागील शास्त्रीय विचार अत्यंत महत्वपूर्ण असणार.

चला तर मग जाणून घेऊया बस्ती कर्मामागील शास्त्रीय विचार.

त्यासाठी पहिले आपल्याला आपल्या पचन संस्थेबद्दल थोडीशी माहिती करून घ्यावी लागणार. आहे.

आपण जे अन्न खातो त्याचे पचन तोंडात सुरू होते. त्यानंतर ते अन्न खाली पोटात म्हणजे Stomach आणि जठर म्हणजे Liver कडे जाते , या अवयवांमधून विविध स्त्राव अन्नात मिसळले जातात आणि जेव्हा ते अन्न आतड्यामध्ये जाते तेव्हा त्यातून पोषक अंश रक्तात शोषून घेतले जातात आणि मग ते पोषक अंश रक्ताद्वारे पूर्ण शरीरात जाऊन शरीराला पोषण देतात.

तर इथे महत्वाची गोष्ट लक्षात ठेवण्याची ही आहे की रक्तात जो पोषक अंश आतड्या मधून शोषला जातो . ह्याच ज्ञानाचा आयुर्वेदाने सुंदररित्या बस्ती चिकित्सेत उपयोग केलेला आहे.  त्या ऋषींना शतश: नमन. 

औषध रक्तात लगेच शोषले गेले पाहिजे.औषधाला अन्न मार्गातून जाण्याची काही आवश्यकता नसते, तीन तासांचा वेळ वाचतो. त्यामुळे आयुर्वेदात बस्ती चिकित्सेद्वारे औषध, काढे, तूप हे आतड्यामध्ये मोठ्या प्रमाणात सोडली जातात. आतड्याचे काम आहे औषध लगेच रक्तात शोषून घेणे आणि त्यामुळे सेकंदात औषध रक्तात जाऊन त्याचे काम सुरू करते .तर बस्ती म्हणजे फक्त पोट साफ करणारे औषध नाही, तर

बस्ती म्हणजे आत्यायिक चिकित्सा.

म्हणजे बस्ती चिकित्सा ही जुन्या काळाची Emergency Services म्हणजे अत्यायिक चिकित्सा होती असे आपण म्हणू शकतो. से आज काल आपण नसेमधून मधून रक्तात लगेच औषध सोडतो तसं त्या काळी बस्ती चिकित्सेद्वारे औषध आतडयात सोडून सेकंदात ते रक्तात शोषले जात असे.

बस्ती चिकित्सा म्हणजे Emergency Services.

आश्चर्यचकित झाला ना .. जाणून.. कि बस्ती चिकित्सेमागे आयुर्वेदाचा इतका मोठा गहण विचार आहे.

आयुर्वेद हे एक शास्त्र आहे हे लक्षात घ्या , आपल्या बुद्धीला त्याच्या मागचे शास्त्र , सिद्धांत समजत नसतील तर त्याला नावे ठेवू नका किंवा ते चुकीच आहे असे मानू नका. त्याच्यापेक्षा त्याच्या मागे काय शास्त्रीय विचार असेल ह्याच अभ्यास करून शोध घ्या .

आपल्या आयुर्वेद शास्त्राबद्दल आदर बाळगा. कारण

आयुर्वेदिक शास्त्राचा प्रत्येक सिद्धांत = सिद्ध + अंत म्हणजे ते सत्य आहे आणि ते सत्य सिद्ध केलेले आहे आणि त्याच्या पुढे सिद्ध करण्यासाठी काही उरले नाही …..अंत आहे. त्याच्यापुढे त्याच्यात बदल नाही ह्याला सिद्धांत म्हणतात.

हा ब्लॉग जास्तीत जास्त फॉरवर्ड करा म्हणजे आयुर्वेदाच्या मागचे सिद्धांत लोकांना कळतील. हा ब्लॉग जास्तीत जास्त शेअर करा, तुमचे कमेंट कळवा आणि पुढील ब्लॉग मध्ये आपण बस्तीचीचे विविध प्रकार त्याचे उपयोग यांच्याबद्दल माहिती करून घेऊया.

Stay Healthy ,Stay blessed.

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पंचकर्म क्या है ? (Hindi Blog no – ) Blog – 55

पंचकर्म पंचकर्म पंचकर्म…. आजकल सब जगह एक ही नाम है पंचकर्म

कोई पंचकर्म का मतलब मसाज समझते हैं तो कोई पंचकर्म को उल्टी और जुलाबवाली दवा कहते हैं।

तो आखिर सही अर्थ में पंचकर्म है क्या ?

चलो जानते हैं आज के हमारे ब्लॉग में पंचकर्म क्या है?

पंचकर्म

पंच याने ५ और कर्म याने क्रिया।

पंचकर्म याने ऐसी पांच क्रियाए जिन से शरीर शुद्धि होती है और शरीर को ताकत मिलती है |

  • शरीर शुद्धि पंचकर्म मे समावेश होता है।

१. वमन
२. विरेचन
३. बस्ती
४. नस्य
५. रक्तमोक्षण

  • शरीर को ताकत देनेवाले पंचकर्म में समावेश होता है।
    शक्तिवर्धक पंचकर्म

    १. स्नेहन
    २. स्वेदन
    ३. शिरोधारा
    ४. नस्य
    ५. बस्ती

नस्य और बस्ती इन कर्मोका शरीरशुद्धी पंचकर्म और शक्तिवर्धक पंचकर्म इन दोनों मे समावेश होता है क्युकि जिस प्रकार का द्रव्य इन कर्मों में इस्तेमाल होता है (जैसे जिस प्रकार का तेल, घी, काढ़ा ) उस तरह का शरीर पर असर होता है जैसे शक्तिवर्धक द्रव्य का इस्तेमाल बस्ती या नस्य मे किया तो शक्तिवर्धन होता है और अगर शरीरशुद्धी द्रव्य का उपयोग किया तो नस्य और बस्ती से शरीर शुद्धी होती है , इसलिए इन कर्मो का समावेश दोनों में होता है।

पहले शरीरशुद्धि पंचकर्म के बारे में जानते है |

शरीर शुद्धी पंचकर्म –

वमन और विरेचन

कालावधी –

वमन और विरेचन इन पंचकर्म क्रियाओं को १५ दिन का कालावधी लगता है।

शास्त्र –

वमन और विरेचन इन शरीर शुद्धि कर्मोमे शरीर की पचनशक्ती को शरीरशुद्धी के लिए इस्तेमाल किया जाता है इसलिए जिंदा रहने के लिए आवश्यक हो उतना ही अन्न खाना यह मंत्र हमें कम से कम १५ दिन अपनाना पड़ता है। शरीरशुद्धि क्रिया में पचन शक्ति को पचन कर्म से आराम देकर उस पचनशक्ती को शरीर शुद्धि के लिए इस्तेमाल करना यह इसके पीछे का हेतु होता है।


विधी– वमन और विरेचन पंचकर्म को ४ विभागों में विभाजित किया जाता है।
१. स्नेहपान
२. प्रधान कर्म
३. संसर्जन क्रम
४. अपुनर्भव चिकित्सा

१. स्नेहपान

इस विधी मे बढ़ते प्रमाण मे औषधी घी का सेवन करना होता है।

यह विधि ५ से ६ दिन चलती है।

इसमें सुबह खाली पेट औषधी घी का सेवन करना होता है और औषधि घी बढ़ते हुए प्रमाण में दिया जाता है, जैसे पहले दिन ४ चम्मच, दुसरे दिन ६ चम्मच फिर ८, १२, १६ चम्मच इस प्रमाण में औषधि घी को बढ़ाया जाता है। घी खाने के बाद गरम पानी पीते रहकर जब घी की डकार आना बंद हो जाए (मतलब घी हजम हो गया है )उसके बाद भूख लगे तब मूंग दाल की खिचड़ी और प्यास लगे तब गरम पानी पीना होता है।

इस औषधि घी के सेवन से हमारे शरीर का आम (टॉक्सिंस) पतला होता हैं।

उस के बाद स्नेहन यानी मसाज और स्वेदन याने स्टीमबाथ दी जाती है|

स्नेहन और स्वेदन – यहा स्नेहन और स्वेदन का उद्देश शरीर का आम (टॉक्सिक्स) शरीर के मध्य मे लाना होता है| जैसे हम घर की साफ सफाई करने के बाद नीचे गिरा हुआ कचरा इकट्ठा करके फिर बाहर फेकते हैं उसी तरह जब स्नेहपान से शरीर का आम पतला होता है (टॉक्सिन लिक्विफाय होते है) तब स्नेहन और स्वेदन से वह आम शरीर के शाखाओं से मध्य में लाया जाता हैं।

२. प्रधान कर्म

स्नेहन और स्वेदन कर्म के बाद आम को (टॉक्सिक्स) उपर के मार्ग से याने उल्टी द्वारा निकाला जाए तो उसे वमन कर्म कहते हैं और अगर जुलाब कराकर नीचे के मार्ग से निकाला जाए तो उसे विरेचन कर्म कहते हैं।

३. संसर्जन क्रम

यह १० दिन से लेकर १५ दिन तक करने का विधि है |

वमन और विरेचन इन प्रधान कर्मो के दौरान सिर्फ मूंग दाल और चावल खाना होता है| मतलब यह विधी उपवास के समान ही हो जाता है| इसलिए जैसे कोई भी उपवास छोड़ते वक्त हम शुरवात में हलके पदार्थ खाना शुरू करते हैं फिर धिरे धिरे हजम करने में भारी पदार्थ खाना शुरु करते है वैसे ही वमन और विरेचन इन प्रधान कर्मो के बाद हम पहले भोजन मे हल्के पदार्थ जैसे लिक्विड याने दाल का पानी, चावल का पानी, चावल और फिर खिचड़ी ऐसे धीरे-धीरे नॉर्मल डाइइट पर आते हैं| इस क्रम को संसर्जन क्रम कहते हैं।
संसर्जन क्रम के बाद आती हैं।

४. अपुनर्भव चिकित्सा

अपुनर्भव मतलब व्याधी फिर से ना हो इसलिए की जाने वाली चिकित्सा ( Preventive treatment) इसमें प्रधान कर्म होने के बाद आगे १५ दिन औषधि और घी दिया जाता हैं जिससे प्रतिकार शक्ति बढ़ती है।

वमन विरेचन कर्म कब करने चाहिए?

निरोगी व्यक्ति ने वसंत ऋतु में यानी लगभग फरवरी-मार्च के दरमियान वमन कर्म और शरद ऋतु में याने लगभग सितंबर – अक्टूबर मे विरेचन कर्म करवाके लेने चाहिए।

बीमार व्यक्ति ने पंचकर्म कब करवाना चाहिए ?

बीमार व्यक्ति ने वैद्य की सलाह लेकर या बीमारीकी गंभीरता को ध्यान मे रखकर साल भर मे एकबार पंचकर्म करवाके लेना चाहिए।

वमन / विरेचन कर्म मे से कौनसा कर्म किसने करवाना चाहिए ?

उसके लिए भी वैद्य की सलाह आवश्यक है।

अनुमान ऐसा होता है कि जिनकी प्रकृति कफ की है और जिनको कफ की बीमारियां है जैसे बार बार सर्दी होना, खासी, अस्थमा, डायबिटीज, थाइरॉइड और अलग-अलग प्रकार के त्वचा रोग जैसे एग्जिमा, सोरियासिस हो उन लोगों को वमन कर्म करवाके लेना चाहिए और जिनकी पित्त की प्रकृति है और जिन्हे पित्त की बीमारीया है जैसे मासिक धर्म की समस्या, माइग्रेन, सिरदर्द, मलबद्धता, एसिडिटी हो उन्हे विरेचन कर्म करवाकर लेना चाहिए।

साल मे कितनी बार पंचकर्म करवा के लेना चाहिए?

जैसे हम साल मे एक बार घर की साफ सफाई करते है उसी प्रकार साल मे एक बार पंचकर्म करवाकर लेना चाहिए।

पंचकर्म के फायदे

१. शरीरशुद्धि होती है |

२. शरीर को ताकत मिलती है।

३. अपुनर्भव चिकित्सा – इस विधि से प्रतिकार शक्ति बढ़ती है।

इस ब्लॉग में हमने वमन और विरेचन के बारे मे जानकारी ली। अगर आपको कोई भी शंका हो तो हमारे

E-MAIL ID – aarogyam.ayurvedic.clinic@gmail.com पर आप हमे संपर्क कर सकते है ।

अगले ब्लॉग मे हम बस्ती कर्म के बारे मे जानेगे।

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