Prajanan प्रजनन -हेल्दी प्रेगनेंसी, हेल्दी बेबी , हेल्थी मदरहूड के लिए पंचकर्म

आज का विषय है हेल्दी प्रेगनेंसी, हेल्दी बेबी , हेल्थी मदरहूड

हेल्दी प्रेगनेंसी, हेल्दी बेबी , हेल्थी मदरहूड के लिए हमें क्या करना चाहिए?

इसके लिए एक बहुत ही अच्छा उपाय आयुर्वेद में बताया गया है। – पंचकर्म और योगा

पंचकर्म और योगा से हम हेल्दी प्रेगनेंसी, हेल्दी बेबी , हेल्थी मदरहूड हासिल कर सकते है।

पंचकर्म और योगा से हमे कैसे फायदा होगा?

पंचकर्म –

हम हर रोज हमारे घर की साफ सफाई करते है फिर भी साल में एक बार हम पूरे घर की फिरसे अच्छे से साफ सफाई करते है। कयू ? क्योंकि अगर घर के कोनो में जमी गंदगी भी निकल जाए तो कीटाणु नहीं होगे और कीटाणु नही तो बीमारियां नही। घर मे सब स्वस्थ रहेंगे। उसी तरह साल में एक बार अगर हम पंचकर्म से शरीर की शुद्धि करे तो तो साल भर शरीर में जमा हुए टॉक्सिंस(गंदगी) शरीर से  निकल जाती है और हम निरोगी रहते है।और निरोगी शरीर से ही हेल्दी प्रेगनेंसी, हेल्दी बेबी , हेल्थी मदरहूड हासिल होती है |

योगा –

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव और स्ट्रेस हर बीमारी का महत्वपूर्ण कारण है। योगा एक ऐसा व्यायाम है कि जिसमें हम बहुत ही संथ गती से श्वास अंदर लेते है और श्वास बाहर निकालते है। इस वजह से अपना मन और शरीर शांत हो जाता है और हम निरोगी रहते हैयोगा करने से शरीर और मन का तनाव भी निकल जाता है। योगा के साथ मुद्रा करे और मंत्र कहे तो हमारे शरीर मे सकारात्मक ऊर्जा बनती है। वह भी हमे निरोगी रखने मे मदद करती है। और संतुलित शरीर और मन में ही हेल्दी प्रेगनेंसी, हेल्दी बेबी , हेल्थी मदरहूड पाई जा सकती है।

जीवनशैली में परिवर्तन

आजकल 70 टक्के बीमारियां अपने गलत जीवनशैली की वजह से होती है जैसे वबेवक्त खाना, पीना, सोना, उठाना। अगर हम जीवनशैली मे बदलाव ना करे तो आज हम निरोगी है पर बार-बार बीमार होते रहेंगे ।   

इसलिए आपको अगर हेल्दी प्रेगनेंसी, हेल्थी बेबी, हेल्थी मदारहूड चाहिए तो पहले खुद को और अपने साठीदार को निरोगी बनाए।

यह सब चीजो को ध्यान में रखकर हमारे आरोग्यम आयुर्वेदिक क्लीनिक मे हमने एक प्रोग्राम बनाया है। उसका नाम है प्रजनन।

प्रजनन

इस प्रोग्राम मे हमने पंचकर्म, योगा, मुद्रा, मंत्र, जीवनशैली मे बदलाव और विविध दवाइयां इस सब का अंतर्भाव किया है। इसकी वजह से आपका शरीर और मन संतुलित और निरोगी रहता है।

यह प्रोग्राम 15 दिन से 1 महीने का होता है। अगर आपको अच्छी स्वस्थ प्रेगनेंसी चाहिए तो प्रेगनेंसी प्लान करने से पहले (नॅच्युरल प्रेगनेंसी हो, या IUI/ IVF  हो ) उससे पहले आप यह आयुर्वेद का सुंदर वरदान पंचकर्म इसका जरूर उपयोग कीजिए । प्रजनन प्रोग्राम का लाभ उठाए।

धन्यवाद.

जानिए बस्ती पंचकर्म के पीछेका शास्त्रीय विचार क्या है? Blog – 59

नमस्कार

पिछले ब्लॉग मे हमने पंचकर्म, उसके प्रकार वमन और विरेचन कर्म इनके बारे में अधिक जानकारी ली थी | इस ब्लॉग मे हम बस्ती कर्म के बारे मे जानकारी लेंगे |

लोगों को बस्ती कर्म याने पेट साफ करने वाली दवा इतना ही पता होता है| पेट साफ हो गया और अच्छा लगने लगता है।

कया बस्ती कर्म का इतना ही उपयोग है ? – नही | बस्ती चिकित्सा के पीछे एक बहुत महत्वपूर्ण विचार/ शास्त्र है।

आयुर्वेद में बस्ती चिकित्सा को “आधी चिकित्सा” कहा जाता है।

मतलब रुग्ण को हम सिर्फ बस्ती चिकित्सा देकर 50% ठीक कर सकते हैं | और बाकी के 50% गुण के लिए बाकी सब पंचकर्म, दवाई, जीवनशैली में बदलाव और व्यायाम की जरूरत पड़ती है। याने रुग्ण को 50% गुण सिर्फ बस्ती चिकित्सा से ही मिल जाता है।

आयुर्वेदने इसलिए बस्ती चिकित्सा को बहुत महत्वपूर्ण माना है। तो उसके पीछे का शास्त्र भी बहुत महत्वपूर्ण होगा।

चलो इस ब्लॉग में हम जानते हैं कि बस्ती कर्म के पीछे क्या शास्त्रीय विचार है?

उससे पहले हमें अपने शरीर के पचनमार्ग के बारे में थोड़ी जानकारी होना आवश्यक है।

हम जो अन्न खाते है उसपर पचन संस्कार मुंह में शुरू हो जाता है| फिर अन्न जैसे नीचे नीचे जाता है वैसे पेट, जठर, अग्न्याशय याने (stomach, liver, Pancrease) से पाचक स्त्राव उसमे मिलते है। फिर वह अन्न नीचे छोटे और बड़े आंतडो में जाता है| छोटे और बड़े आंतडोमे उस अन्न से पोषक अंशको खून में शोष लिया जाता है।

मतलब इधर एक बात पर गौर किजिए कि जो पोषक अंश खून में शोष लिया जाता है वह आतडो से होता है। और जब यह पोषक अंश खून में शोष लिया जाता है उसके बाद वह पूरे शरीर में जाकर शरीर का पोषन होता है और हमारे शरीर को ताकत मिलती है। इसी तत्व का फायदा बस्ती चिकित्सामें उन जमाने में ऋषियों ने किया।

कैसे?

दवा को ३ घंटे के पचन मार्ग से जानेकी आवश्यकता नहीं होती। इसलिए उन विद्वान ऋषियों ने बस्ती चिकित्साकी निर्मिती की ।बस्ती चिकित्सा द्वारा दवाईयां सिधा आंतडो में जाती है और मिनटोमें आंतडो से रक्त मे शोषण होती है और अपना काम शुरू कर देती है।

मतलब उन दिनो मे बस्ती चिकित्सा यह इमरजेंसी सर्विस याने अत्यायिक चिकित्सा होती थी।

उन ऋषियों और उनकी विद्वता को सलाम।

आप आश्चर्यचकित हो गए ना जानकर कि बस्ती चिकित्सा कितनी महत्वपूर्ण है और उसके पीछे इतना गहन शास्त्र है |

आयुर्वेद ऐसे अनेक सिद्धांतो से परिपूर्ण है क्युकि आयुर्वेद यह एक शास्त्र है। इसलिए उसके सिद्धांत समझ न आए तो आयुर्वेद के बारे में नाम रखने से पहले उस शास्त्र का अभ्यास करना चाहिए|

क्युकि आयुर्वेद के सिद्धांत सिद्ध करके अंत हुए हैं, याने यह तत्व सिद्ध हुए है और उसके आगे सिद्ध करने जैसा कुछ नही है। इसलिए आयुर्वेद के सिद्धांत इतने सालो बाद आज भी सच है | इसलिए अपने शास्त्र प्रति आदर रखो।

आयुर्वेद के सिद्धांत के बारे मे हम आनेवाले ब्लॉगस् मे लिखते रहेंगे|

अगले ब्लॉगमे हम बस्ती के प्रकार और बस्ती के बारे मे और अधिक जानकारी लेंगे|

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Science behind Basti Panchakarma – Blog – 58

Welcome to Treasures of Ayurveda Blog.

In last Blog we learnt about panchakarma, its various types – Vaman and Virechan in detail. In today’s Blog we will learn about BASTI CHIKITSA.

Generally , Basti is perceived as something which clears ones bowels.

Is that the sole role of BASTI ? No.

Do you think ayurveda will give so much of importance to a therapy whose role is to only clear your bowels.

Ofcourse not.

Basti has a well established science behind it.

So in today’s blog we are going to learn

What is the science behind BASTI CHIKITSA?

Ayurveda considers basti as “half treatment”.

Means if a patient come to us for treatment , then with only basti treatment we can cure patient upto 50%. and for the remaining 50% result we need the help other karma’s, medicine, diet, exercise.

Such is the importance given by  Ayurveda to  basti treatment.

So before understanding the science behind the basti treatment we should have a glimpse at our digestive system.

When we eat food , it’s digestion starts from the mouth. As the food descends downwards into the stomach , it gets mixed with different gastric juices and liver enzymes. The main function of absorption of nutrition from food takes place in the intestine- large intestine as well as small intestine. Absorbed nutrients from the food along with blood goes to the whole body and thus our body gets nourishment.

So the important fact to remember here is – Absorption takes place in the intestine. This principle was used by our hrishi’s in formulating the Basti Chikitsa.

Food needs a three hour digestion process so that it gets converted to a form through which body can absorb nutrients. But a medicine doesn’t required 3 hours digestion process to be absorbed into the blood. So to cut short this 3 hours process and reach intestine directly our Hrishis formulated BASTI Chikitsa,

Medicines in the form of kadhas or ghee were used to insert into the large intestine with the help of a BASTI YANTRA so that medicine gets absorbed into the blood within seconds.And thus a medical emergency treatment came into existance in those ancient days….hence BASTI chikitsa had such inportance.

You must be astonished to know the science behind basti treatment.

Our hrishi’s need to be saluted for discovering such Novel, emergency treatment modality called Basti Chikitsa in those days.

All Panchakarmas and medicine of Ayurveda have science behind it. It is called a Siddhant.

Siddhant – Siddha + Anth

Siddha means something which is proven and anth means it is the end. Means it is the truth which is proven and its not going to change. All the Siddhant told in ayurveda are very unique and are truths of Life.

If we dont understand these Siddhants then it might be because we have not made efforts to find details , study it or we are not intelligent to understand it. But saying that Ayurveda is not science , is all bullshit . We should study, investigate and learn the science first.

Ayurveda is time-tested science which is true even today. So we should pay respect to Ayurveda and start learning it. I am playing my small role in propogating  ayurveda by telling science behind Ayurveda, you do yours.

In next blog we will learn about basti karma in details like types, advantages etc.

Do follow our blog treasures of Ayurveda.

Stay Healthy Stay Blessed.

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बस्ती पंचकर्मामागील शास्त्रीय विचार काय आहे ? – Blog – 57

मागील ब्लॉग मध्ये आपण पंचकर्म, त्याचे प्रकार आणि वमन, विरेचन या कर्माबद्दल माहिती घेतली. आणि आजच्या ब्लॉग मध्ये आपण बस्ती चिकित्सा बद्दल माहिती घेणार आहोत.

बस्ती चिकित्सा म्हणजे काय ?

बस्ती चिकित्सा म्हणजे सामान्यपणे एनीमा म्हणजे पोट साफ करणारे औषध असं मानलं जात कारण पोट साफ झालं की बरं वाटतं.

पण तसे नाही आहे .

बस्ती चिकित्सेमागे खूप महत्वपूर्ण शास्त्रीय विचार आहे.

आयुर्वेदाने बस्ती चिकित्सेला “अर्धी चिकित्सा” मानली आहे. म्हणजे एखाद्या रुग्णाला बरं करण्यासाठी बस्ती चिकित्सा दिली तर ५० टक्के गुण फक्त बस्ती चिकित्सेने मिळतो आणि उरलेल्या ५० टक्के गुणासाठी इतर पंचकर्म, औषध, आहार, व्यायाम यांची योजना करावी लागते.

जर आयुर्वेदाने बस्ती चिकित्सेला इतके महत्व दिले आहे तर त्यामागील शास्त्रीय विचार अत्यंत महत्वपूर्ण असणार.

चला तर मग जाणून घेऊया बस्ती कर्मामागील शास्त्रीय विचार.

त्यासाठी पहिले आपल्याला आपल्या पचन संस्थेबद्दल थोडीशी माहिती करून घ्यावी लागणार. आहे.

आपण जे अन्न खातो त्याचे पचन तोंडात सुरू होते. त्यानंतर ते अन्न खाली पोटात म्हणजे Stomach आणि जठर म्हणजे Liver कडे जाते , या अवयवांमधून विविध स्त्राव अन्नात मिसळले जातात आणि जेव्हा ते अन्न आतड्यामध्ये जाते तेव्हा त्यातून पोषक अंश रक्तात शोषून घेतले जातात आणि मग ते पोषक अंश रक्ताद्वारे पूर्ण शरीरात जाऊन शरीराला पोषण देतात.

तर इथे महत्वाची गोष्ट लक्षात ठेवण्याची ही आहे की रक्तात जो पोषक अंश आतड्या मधून शोषला जातो . ह्याच ज्ञानाचा आयुर्वेदाने सुंदररित्या बस्ती चिकित्सेत उपयोग केलेला आहे.  त्या ऋषींना शतश: नमन. 

औषध रक्तात लगेच शोषले गेले पाहिजे.औषधाला अन्न मार्गातून जाण्याची काही आवश्यकता नसते, तीन तासांचा वेळ वाचतो. त्यामुळे आयुर्वेदात बस्ती चिकित्सेद्वारे औषध, काढे, तूप हे आतड्यामध्ये मोठ्या प्रमाणात सोडली जातात. आतड्याचे काम आहे औषध लगेच रक्तात शोषून घेणे आणि त्यामुळे सेकंदात औषध रक्तात जाऊन त्याचे काम सुरू करते .तर बस्ती म्हणजे फक्त पोट साफ करणारे औषध नाही, तर

बस्ती म्हणजे आत्यायिक चिकित्सा.

म्हणजे बस्ती चिकित्सा ही जुन्या काळाची Emergency Services म्हणजे अत्यायिक चिकित्सा होती असे आपण म्हणू शकतो. से आज काल आपण नसेमधून मधून रक्तात लगेच औषध सोडतो तसं त्या काळी बस्ती चिकित्सेद्वारे औषध आतडयात सोडून सेकंदात ते रक्तात शोषले जात असे.

बस्ती चिकित्सा म्हणजे Emergency Services.

आश्चर्यचकित झाला ना .. जाणून.. कि बस्ती चिकित्सेमागे आयुर्वेदाचा इतका मोठा गहण विचार आहे.

आयुर्वेद हे एक शास्त्र आहे हे लक्षात घ्या , आपल्या बुद्धीला त्याच्या मागचे शास्त्र , सिद्धांत समजत नसतील तर त्याला नावे ठेवू नका किंवा ते चुकीच आहे असे मानू नका. त्याच्यापेक्षा त्याच्या मागे काय शास्त्रीय विचार असेल ह्याच अभ्यास करून शोध घ्या .

आपल्या आयुर्वेद शास्त्राबद्दल आदर बाळगा. कारण

आयुर्वेदिक शास्त्राचा प्रत्येक सिद्धांत = सिद्ध + अंत म्हणजे ते सत्य आहे आणि ते सत्य सिद्ध केलेले आहे आणि त्याच्या पुढे सिद्ध करण्यासाठी काही उरले नाही …..अंत आहे. त्याच्यापुढे त्याच्यात बदल नाही ह्याला सिद्धांत म्हणतात.

हा ब्लॉग जास्तीत जास्त फॉरवर्ड करा म्हणजे आयुर्वेदाच्या मागचे सिद्धांत लोकांना कळतील. हा ब्लॉग जास्तीत जास्त शेअर करा, तुमचे कमेंट कळवा आणि पुढील ब्लॉग मध्ये आपण बस्तीचीचे विविध प्रकार त्याचे उपयोग यांच्याबद्दल माहिती करून घेऊया.

Stay Healthy ,Stay blessed.

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पंचकर्म क्या है ? (Hindi Blog no – ) Blog – 55

पंचकर्म पंचकर्म पंचकर्म…. आजकल सब जगह एक ही नाम है पंचकर्म

कोई पंचकर्म का मतलब मसाज समझते हैं तो कोई पंचकर्म को उल्टी और जुलाबवाली दवा कहते हैं।

तो आखिर सही अर्थ में पंचकर्म है क्या ?

चलो जानते हैं आज के हमारे ब्लॉग में पंचकर्म क्या है?

पंचकर्म

पंच याने ५ और कर्म याने क्रिया।

पंचकर्म याने ऐसी पांच क्रियाए जिन से शरीर शुद्धि होती है और शरीर को ताकत मिलती है |

  • शरीर शुद्धि पंचकर्म मे समावेश होता है।

१. वमन
२. विरेचन
३. बस्ती
४. नस्य
५. रक्तमोक्षण

  • शरीर को ताकत देनेवाले पंचकर्म में समावेश होता है।
    शक्तिवर्धक पंचकर्म

    १. स्नेहन
    २. स्वेदन
    ३. शिरोधारा
    ४. नस्य
    ५. बस्ती

नस्य और बस्ती इन कर्मोका शरीरशुद्धी पंचकर्म और शक्तिवर्धक पंचकर्म इन दोनों मे समावेश होता है क्युकि जिस प्रकार का द्रव्य इन कर्मों में इस्तेमाल होता है (जैसे जिस प्रकार का तेल, घी, काढ़ा ) उस तरह का शरीर पर असर होता है जैसे शक्तिवर्धक द्रव्य का इस्तेमाल बस्ती या नस्य मे किया तो शक्तिवर्धन होता है और अगर शरीरशुद्धी द्रव्य का उपयोग किया तो नस्य और बस्ती से शरीर शुद्धी होती है , इसलिए इन कर्मो का समावेश दोनों में होता है।

पहले शरीरशुद्धि पंचकर्म के बारे में जानते है |

शरीर शुद्धी पंचकर्म –

वमन और विरेचन

कालावधी –

वमन और विरेचन इन पंचकर्म क्रियाओं को १५ दिन का कालावधी लगता है।

शास्त्र –

वमन और विरेचन इन शरीर शुद्धि कर्मोमे शरीर की पचनशक्ती को शरीरशुद्धी के लिए इस्तेमाल किया जाता है इसलिए जिंदा रहने के लिए आवश्यक हो उतना ही अन्न खाना यह मंत्र हमें कम से कम १५ दिन अपनाना पड़ता है। शरीरशुद्धि क्रिया में पचन शक्ति को पचन कर्म से आराम देकर उस पचनशक्ती को शरीर शुद्धि के लिए इस्तेमाल करना यह इसके पीछे का हेतु होता है।


विधी– वमन और विरेचन पंचकर्म को ४ विभागों में विभाजित किया जाता है।
१. स्नेहपान
२. प्रधान कर्म
३. संसर्जन क्रम
४. अपुनर्भव चिकित्सा

१. स्नेहपान

इस विधी मे बढ़ते प्रमाण मे औषधी घी का सेवन करना होता है।

यह विधि ५ से ६ दिन चलती है।

इसमें सुबह खाली पेट औषधी घी का सेवन करना होता है और औषधि घी बढ़ते हुए प्रमाण में दिया जाता है, जैसे पहले दिन ४ चम्मच, दुसरे दिन ६ चम्मच फिर ८, १२, १६ चम्मच इस प्रमाण में औषधि घी को बढ़ाया जाता है। घी खाने के बाद गरम पानी पीते रहकर जब घी की डकार आना बंद हो जाए (मतलब घी हजम हो गया है )उसके बाद भूख लगे तब मूंग दाल की खिचड़ी और प्यास लगे तब गरम पानी पीना होता है।

इस औषधि घी के सेवन से हमारे शरीर का आम (टॉक्सिंस) पतला होता हैं।

उस के बाद स्नेहन यानी मसाज और स्वेदन याने स्टीमबाथ दी जाती है|

स्नेहन और स्वेदन – यहा स्नेहन और स्वेदन का उद्देश शरीर का आम (टॉक्सिक्स) शरीर के मध्य मे लाना होता है| जैसे हम घर की साफ सफाई करने के बाद नीचे गिरा हुआ कचरा इकट्ठा करके फिर बाहर फेकते हैं उसी तरह जब स्नेहपान से शरीर का आम पतला होता है (टॉक्सिन लिक्विफाय होते है) तब स्नेहन और स्वेदन से वह आम शरीर के शाखाओं से मध्य में लाया जाता हैं।

२. प्रधान कर्म

स्नेहन और स्वेदन कर्म के बाद आम को (टॉक्सिक्स) उपर के मार्ग से याने उल्टी द्वारा निकाला जाए तो उसे वमन कर्म कहते हैं और अगर जुलाब कराकर नीचे के मार्ग से निकाला जाए तो उसे विरेचन कर्म कहते हैं।

३. संसर्जन क्रम

यह १० दिन से लेकर १५ दिन तक करने का विधि है |

वमन और विरेचन इन प्रधान कर्मो के दौरान सिर्फ मूंग दाल और चावल खाना होता है| मतलब यह विधी उपवास के समान ही हो जाता है| इसलिए जैसे कोई भी उपवास छोड़ते वक्त हम शुरवात में हलके पदार्थ खाना शुरू करते हैं फिर धिरे धिरे हजम करने में भारी पदार्थ खाना शुरु करते है वैसे ही वमन और विरेचन इन प्रधान कर्मो के बाद हम पहले भोजन मे हल्के पदार्थ जैसे लिक्विड याने दाल का पानी, चावल का पानी, चावल और फिर खिचड़ी ऐसे धीरे-धीरे नॉर्मल डाइइट पर आते हैं| इस क्रम को संसर्जन क्रम कहते हैं।
संसर्जन क्रम के बाद आती हैं।

४. अपुनर्भव चिकित्सा

अपुनर्भव मतलब व्याधी फिर से ना हो इसलिए की जाने वाली चिकित्सा ( Preventive treatment) इसमें प्रधान कर्म होने के बाद आगे १५ दिन औषधि और घी दिया जाता हैं जिससे प्रतिकार शक्ति बढ़ती है।

वमन विरेचन कर्म कब करने चाहिए?

निरोगी व्यक्ति ने वसंत ऋतु में यानी लगभग फरवरी-मार्च के दरमियान वमन कर्म और शरद ऋतु में याने लगभग सितंबर – अक्टूबर मे विरेचन कर्म करवाके लेने चाहिए।

बीमार व्यक्ति ने पंचकर्म कब करवाना चाहिए ?

बीमार व्यक्ति ने वैद्य की सलाह लेकर या बीमारीकी गंभीरता को ध्यान मे रखकर साल भर मे एकबार पंचकर्म करवाके लेना चाहिए।

वमन / विरेचन कर्म मे से कौनसा कर्म किसने करवाना चाहिए ?

उसके लिए भी वैद्य की सलाह आवश्यक है।

अनुमान ऐसा होता है कि जिनकी प्रकृति कफ की है और जिनको कफ की बीमारियां है जैसे बार बार सर्दी होना, खासी, अस्थमा, डायबिटीज, थाइरॉइड और अलग-अलग प्रकार के त्वचा रोग जैसे एग्जिमा, सोरियासिस हो उन लोगों को वमन कर्म करवाके लेना चाहिए और जिनकी पित्त की प्रकृति है और जिन्हे पित्त की बीमारीया है जैसे मासिक धर्म की समस्या, माइग्रेन, सिरदर्द, मलबद्धता, एसिडिटी हो उन्हे विरेचन कर्म करवाकर लेना चाहिए।

साल मे कितनी बार पंचकर्म करवा के लेना चाहिए?

जैसे हम साल मे एक बार घर की साफ सफाई करते है उसी प्रकार साल मे एक बार पंचकर्म करवाकर लेना चाहिए।

पंचकर्म के फायदे

१. शरीरशुद्धि होती है |

२. शरीर को ताकत मिलती है।

३. अपुनर्भव चिकित्सा – इस विधि से प्रतिकार शक्ति बढ़ती है।

इस ब्लॉग में हमने वमन और विरेचन के बारे मे जानकारी ली। अगर आपको कोई भी शंका हो तो हमारे

E-MAIL ID – aarogyam.ayurvedic.clinic@gmail.com पर आप हमे संपर्क कर सकते है ।

अगले ब्लॉग मे हम बस्ती कर्म के बारे मे जानेगे।

पंचकर्म म्हणजे काय? (Marathi Blog No – 03) Blog – 54

पंचकर्म, पंचकर्म, पंचकर्म….आज काल आपण सगळीकडे ऐकतो कि पंचकर्म म्हणजे तेलाने मसाज, पंचकर्म म्हणजे जुलाब, उलट्या वगैरे.

पण पंचकर्म म्हणजे नेमके काय ?

चला मग जाणून घेऊन आपल्या आजच्या ब्लॉग मध्ये ‘पंचकर्म म्हणजे काय ?

पंचकर्म –

पंच म्हणजे ५ आणि कर्म म्हणजे क्रिया.

पंचकर्म म्हणजे अश्या ५ क्रिया ज्याने शरीराची शुद्धी होते किंवा शरीराला ताकत मिळते.

  • शरीरशुद्धी पंचकर्ममध्ये खालील गोष्टींचा समावेश होतो

      1. वमन

2. विरेचन

3. बस्ती

4. नस्य

5. रक्तमोक्षण

  • शरीराला ताकत देण्याऱ्या पंचकर्ममध्ये खालील गोष्टींचा समावेश होतो –    

1. स्नेहन

2. स्वेदन

3. नस्य

4. शिरोधारा

5. बस्ती

नस्य आणि बस्ती यांचा दोन्ही पंचकर्ममध्ये समावेश होतो कारण नस्य आणि बस्ती ह्या कर्मासाठी ज्या प्रकारचे तेल, तूप, काढे वापरले जातात त्यानुसार त्यांनी शरीरशुद्धी होते किंवा शरीराला ताकत मिळते हे ठरते . त्यामुळे त्यांचा दोन्ही पंचकर्मात समावेश होतो.

पहिले जाणून घेऊया शरीरशुद्धी पंचकर्माबद्दल

वमन व विरेचन

कालावधी – वमन व विरेचन या शरीरशुद्धी क्रियेसाठी १५ दिवसांचा कालावधी लागतो.

शास्त्र – या क्रियेमध्ये तुमची पचन शक्ति ही शरीरशुद्धीसाठी वापरली जाते. त्यामुळे ‘जगण्यापूरते खाणे’ हा मंत्र १५ दिवस पाळवा लागतो . म्हणजे या शरीरशुद्धी क्रियेमध्ये पचनशक्तिला त्याच्या नेहमीच्या पचनक्रियेपासून विश्रांती द्यावी लागते आणि त्या पचनशक्तिचा शरीरशुद्धीसाठी वापर करायचा असतो हा येथे हेतू असतो .

विधी –  वमन/विरेचन विधी हा चार विभागात विभागला जातो.

  1. स्नेहपान
  2. प्रधान कर्म
  3. संसर्जन क्रम
  4. अपुनर्भव चिकित्सा

1. स्नेहपान – वाढत्या प्रमाणात औषधी तूप सेवन करणे.

हा विधी साधारण ५ ते ६ दिवस चालतो. ह्या क्रियेमध्ये वाढत्या प्रमाणात औंषधी तूप पिण्यास देतात . वाढत्या प्रमाणात म्हणजे पहिल्या दिवशी  ४ चमचे, दुसऱ्या दिवशी ८ चमचे मग १२, १६ असे. तूप पिल्यावर गरम पाणी पित राहणे आणि जेव्हा तूपाचे ढेकर यायचे बंद होतील, म्हणजे तूप पचले आहे. त्यानंतर तहाण लागेल तेव्हा गरम पाणी पिणे आणि भूक लागेल तेव्हा मूग आणि भाताची खिचडी खाणे हा सर्वसामान्य विधी असतो.

या औषधी तूपामुळे आपल्या शरीरातील आम (टॉक्सिन्स) पातळ होतो.

त्यानंतर स्नेहन म्हणजे मसाज आणि स्वेदन म्हणजे स्टीमबाथ दिली जाते .

स्नेहन व स्वेदन-इथे स्नेहन व स्वेदनामुळे शरीरातील पातळ झालेला आम (टॉक्सिन्स) शरीराच्या मध्य भागी आणणे हा उदेशअसतो. ज्याप्रमाणे आपण घराची साफ सफाई केल्यावर कचरा खाली पडतो मग आपण तो कचरा गोळा करतो आणि नंतर बाहेर फेकतो. त्याप्रमाणे स्नेहपान क्रियेमुळे शरीरातले आम (टॉक्सिन्स) पातळ झाल्यावर स्नेहन स्वेदन कर्मामुळे सर्व आम (टॉक्सिन्स) शरीरातील मध्यभागी आणला जातो .

2. प्रधान कर्म –

स्नेहन आणि स्वेदनकर्म झाल्यानंतर जेव्हा हा आम (टॉक्सिन्स) उलटी द्वारे बाहेर काढला जातो तेव्हा त्या कर्मास वमन कर्म असे म्हणतात आणि जर हा आम (टॉक्सिन्स) जुलाबांद्वारे बाहेर काढला जातो तेव्हा त्या कर्मास विरेचन असे म्हणतात.

3. संसर्जन कर्म –

हा विधी १० व्या दिवसापासून १५ व्या दिवसापर्यंत असतो. उपवास सोडताना जसे आपण पहिले हलके अन्न खातो व नंतर हळूहळू जड अन्न खाण्यास सुरुवात करतो त्याप्रमाणे वमन आणि विरेचन या विधीत आपला एकप्रकारे उपवासच होतो. त्यामुळे प्रधान कर्मानंतर आपण हळुहळु हलके अन्न खाण्यास सुरुवात करतो जसे पहिल्या दिवशी भाताची पेज, नंतर मऊ भात, मग खिचडी, भाकरी. असे हळु हळु पचनास जड पदार्थ क्रमाने खाण्यास सुरुवात करतात म्हणून या विधीस संसर्जन क्रम असे म्हणतात .

अपुनर्भव चिकित्सा –

अपुनर्भव म्हणजे ‘आजार परत होऊ नये म्हणून करावयाची चिकित्सा’ म्हणजे Preventive treatment. या विधीमध्ये पंचकर्म शरीरशुद्धी झाल्यावर शरीराला ताकत देण्यासाठी व परत आजार होऊ नये म्हणून पुढे १५ दिवस औषधे ,औषधी तूप , रसायन कल्प दिले जातात , ज्यांचा सेवनाने आपली प्रतिकार शक्ती वाढते आणि आपल्याला आजार होत नाही.

वमन आणि विरेचन कधी करावे ?

निरोगी व्यक्तीनी वसंत ऋतु मध्ये म्हणजे फेब्रुवारी/मार्च मध्ये वमन करून घ्यावे आणि शरद ऋतुमध्ये म्हणजे सप्टेंबर /ऑक्टोबर मध्ये विरेचन कर्म करून घ्यावे.

आजारी व्यक्तीनी पंचकर्म कधी करावे?

ज्यांना आजार असेल त्यांनी वैद्याच्या सल्यानुसार आणि आजाराच्या गांभीर्यानुसार वर्षभरात कधीही वमन किंवा विरेचन हे कर्म करून घ्यावे.

वमन/विरेचन कर्मापैकी कोणते कर्म कोणी करावे?

त्यासाठी सुद्धा वैद्याचा सल्ला घेणे आवश्यक आहे.

तरी ढोबळ मानाने कफ प्रकृतीच्या लोकांनी आणि ज्यांना कफाचे आजार आहेत जसे जुनाट सर्दी, खोकला, दमा, स्रावी त्वचारोग, स्थौल्य, थाईरॉईड, मधुमेह आदि त्यांनी वमन कर्म करून घ्यावे आणि ज्या लोकांची प्रकृती पित्ताची आहे आणि ज्यांना पित्ताचे आजार आहेत जसे डोकेदुखी, एसिडिटी, गॅसेस,पचनाचे विकार, पाळीच्या तक्रारी, त्वचारोग आदि अशा लोकांनी विरेचन कर्म करून घ्यावे .

वर्षातून किती वेळा पंचकर्म करावे?

घराची साफसफाई जशी आपण वर्षातून एकदा करतो त्याप्रमाणे वर्षातून एकदा वमन किंवा विरेचन कर्म आपल्या प्रकृती व आजारानुसार करवून घ्यावे .

फायदे –

१. शरीरशुद्धी होते.

२. शरीराला ताकत मिळते.

३.अपुनर्भव चिकित्सा – या विधीमुळे आपली प्रतिकार शक्ती वाढते.

ही वमन व विरेचनबद्दल थोडक्यात माहिती होती.तुमच्या काही शंका असतील तर तुम्ही aarogyam.ayurvedic.clinic@gmail.com वर आमच्याशी संपर्क साधू शकतात.

पुढील ब्लॉग मध्ये आपण बस्ती कर्माबद्दल माहिती करून घेऊया .

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बवासीर का खून तुरंत रुकाए – प्याज (घरेलू नुस्का – 07) Blog – 50

आज का हमारा विषय है – बवासीर

बवासीर यह बहुत ही वेदनायुक्त और तकलीफ देने वाली बीमारी है| क्योंकि हर वक्त उठते बैठते यह बीमारी बहुत परेशानी देती है और अगर बवासीर से खून गिरने लगे तो दर्द और परेशानी के साथ कमजोरी और टेंशन भी बढ़ने लगता है|

बवासीर किन लोगों में ज्यादा होता है?

जो लोग ज्यादा तीखा , ज्यादा मांसाहार खाते है और जिनको मलबद्धता की तकलीफ होती हैं उनमे बवासीर ज्यादा पाया जाता है|

इस बवासीर की बीमारी से कैसे बचे?

१)मलबद्धता मत होने दिजिए।
२) गर्मी के लिए बताए गए आरोग्य मंत्र का पालन करें|

आरोग्य मंत्र की वीडियो लिंक हमने नीचे डिस्क्रिप्शन में बताई है वह जरूर देखें|

गर्मी का आरोग्यमंत्र है

सफेद, मीठे, पानीयुक्त, नारियल युक्त और उबाले हुए पदार्थ खाए।

  • सफेद पदार्थो का सेवन ज्यादा करें जैसे दूध और दूध के पदार्थ विशेष रूप से घी और मक्खन , चावल, नारियल|
  • सफेद फल जैसे अमरूद, सेब, केला, सीताफल रोज खाइए|
  • और तीखे और तले हुए पदार्थ बहुत कम मात्रा में खाइए|

अगर बवासीर से खून गिरने लगे तो क्या करें?

गर्मी में अगर हम कच्ची हरी मिर्च का सेवन करेंगे जैसे चटनी, पाणी पूरी आदि में तो बवासीर से खून गिरने लगता है |

  • इस खून को तुरंत रुकाने के लिए प्याज छिलके के साथ गैस पर सेके और छिलका निकाल कर उसका सेवन करें|
  • या प्याज को दही के साथ मिलाकर उसका सेवन करें।
  • और हरी मिर्च, अदरक, लहसुन , काली मिरी बिल्कुल मत खाए।

बवासीर होने पर हमे क्या परहेज करने चाहिए ?

  • हरी मिर्च और तीखे पदार्थ,अदरक, लहसुन , काली मिरी मत खाए ।
  • हर रोज खाने में ज्यादा मात्रा में छाछ का सेवन करें।
  • सुबह और शाम त्रिफला का चूर्ण या त्रिफला की गोली का सेवन करे।
  • हफ्ते में २-३ बार जिमीकंद (सूरन) की सब्जी बना कर खाएं। सूरन बावासीर हटाने में बहुत अच्छा काम करता है|

सूरन की सब्जी बनाते वक्त पहले सूरन को एक घंटा छाछ में भिगोकर फिर गरम पानी सेअच्छे से धो दें। इससे सूरन में जो क्षार होते है वह निकल जाते है| सूरन को ऐसे नहीं पकाया तो उससे गले में खराश, पथरी ,संधिवात जैसी बीमारिया होने की संभावना बढ़ जाती है|

अगर आपको बवासीर के साथ मलबद्धता हो तो खाने से पहले गरम पानी या गरम दूध में एक चम्मच घी या बादाम का तेल मिलाकर उसका सेवन करें। इससे पेट अच्छे से साफ होता है, बवासीर की जगह की जलन कम होती है और उधर की त्वचा में आया हुआ रूखापन कम होता है|

इस तरह परहेज और घरेलू नुस्को से आपको बवासीर में काफी राहत मिल जाएगी। लेकिन बवासीर को जड़ से मिटाने के लिए आप वैद्य और डॉक्टर की सलाह जरूर लीजिये| पंचकर्म के क्षारसूत्र कर्म से बवासीर जड से निकलता है ।

यह घरेलू नुस्का आपको कैसा लगा जरूर बताइए और ऐसे घरेलू नुस्को के लिए हमारे साथ बने रहिए|
Stay healthy, Stay blessed ।

उपवास कैसे करना चाइए ?(आरोग्य मंत्र- ०४) bLOG – 33

पिछले ब्लॉग मे हमने उपवास का मतलब जाना –

उप याने – अंदर , वास याने – रहना ……..

उपवास याने अपने अंदर वास  करो |

अपने अंदर की शक्ती /आत्मा उस पर चिंतन करो याने आत्मचिंतन करो |

तो उपवास मन की शांती /आध्यात्मिक उन्नति के लिए होते है|

इसलिए उपवास के दिन हो सके उतना आत्मचिंतन /meditation करना चाहिए |

आत्मचिंतन के साथ शरीरशांती के लिए भी उपवास करना चाहिए | शरीर शांती याने जो अपनी पचन क्रिया निरन्तर काम कर रही है उसे विश्रांती देना |

आयुर्वेद मे इसे लंघन कहते है | मतलब पूरा दिन कुछ नही खाना |

लंघन करने से पचनशक्ती को रोज के काम से विश्रांती मिलती है और वह शरीरशुद्धी का काम करती है | जैसे हमे हफ्ते मे एक दिन छुट्टी मिल गई की हम हफ्ते के सारे बचे-कुचे काम ,साफसफाई करते है |

किंतु बहुतांश लोग लंघन नही कर पाते । आपको लंघन करने नही जमता तो उपवास के दिन कम और हल्का अन्न खाना चाहिए|

पर हम तो “ एकादशी दुप्पट खाशी ” मतलब उपवास के दिन विविध उपवास के पदार्थ बनाकर बहुत ज्यादा खाते है और पचन शक्ती को आराम की जगह दुगना काम देते है | इसलिए उपवास करने पर निरोगी रहने की जगह हमे एसिडिटी ,सिरदर्द ,पेटदर्द जैसी सब पित्त की बीमारीया होने लगती है |

तो जानते है आज का आरोग्य मंत्र – ०४

“उपवास कैसे करना चाहिए ?”

उपवास के दिन पित्त बढ़ाने वाली चीजे नही खानी चाहिए पर आप कहोगे की उपवास के दिन तो खिचड़ी खाने को कहा है |

नही…. उपवास के दिन खिचडी नही बल्की साबुदाना खाने को कहा है |

साबुदाने का रंग सफेद होता है | सफेद रंग पित्तशामक होता है |

खिचड़ी मे जो मूंगफली और मिर्च  होती है वो पित्त बढ़ाते है |

दिन भर खिचड़ी खाने से पित्त ज्यादा बढ़ जाता है , श्याम तक या अगले दिन तक पित्त की सारी बीमारीया होने लगती है जैसे सिरदर्द ,पेटदर्द ,एसिडिटी|

इसलिए उपवास के दिन हल्का और पित्त कम करने वाला अन्न खाना चाहिए जैसे की साबुदाना खीर ,फल और दूध|

इनसे पर्याप्त पोषण मिलता है ,यह पचन करने मे हल्के होते है और पित्त भी नही बढाते |

तो उपवास कैसे करना चाहिए ?

  • उपवास के दिन ज्यादा से ज्यादा समय आत्मचिंतन करना चाहिए ।
  • हल्का और कम अन्न खाना चाहिए |
  • पित्तशामक याने पित्त को न बढ़ाने वाले पदार्थ खाने चाहिए – साबूदाना खीर , फल और दूध ।

आज हमने उपवास के पीछे का शास्त्र जाना “पचन क्रिया को विश्रांति देकर आत्म-चिंतन करो ”।

हम रविवार को हम ब्रेक लेते है ,विश्रांति करते है ,साफ सफाई और हफ्ते भर के बचे-कुचे काम करते है और सोमवार को ताजा तवाना होकर नये जोश के साथ काम पर लग जाते है |

उसी तरह हफ्ते मे एक दिन शरीर और मन को विश्रांति देनी चाहिए ताकि वह भी खुद की साफ सफाई करके ,शुद्ध होकर नये जोश से काम कर सके |

तो चलो……..हफ्ते मे एक दिन शास्त्र मे बताए गये तरीके से उपवास करे और निरोगी रहे |

तो मिलते है अगले आरोग्य मंत्र के साथ…तब तक के लिए |

Stay Healthy, Stay Blessed .

How to do fasting? (HEALTH MANTRA – 04) BLOG – 32

In last blog we learnt the meaning of upwaas , UP means- inside and VAAS means – to go.

UPVAAS means “To go inside ourself and meditate on internal power/atma/ god .”

So the real motive of upvaas is “to achieve mental peace by meditation”.

During Upavaas along with mental peace body  peace should also be achieved.

Body peace means giving a break to your digestive system so that it does its pending work, purifies itself and gets revived.

Same ways like how we take a weekly break to do our pending work and get relaxed.

Ayurveda calls it “Langhan”. Langhan means not eating anyting the whole day.

Due to langhan our digestive system which is working continuously gets a break.

But most of us can’t do langhan so you should at least eat light food on the day of fasting .

But we make variety of upvaas receipes  and eat double .

                 Ekadashi  Dupaat khashi

i.e. instead of giving break to digestion we give it double work .

So instead of health we end up in all kinds of PITTAH diseases like acidity, pain in abdomen, headache etc.

So our Health Mantra – 04 is – “How to do upvaas?

On day of upvaas we should not eat things which increase PITTAH but you will say khichadi is advised in upwaas …….No , Not Khichadi…..Sabudaana is advised in upwaas .

Sabudana is white in colour , anything which is white is coolant ,it never increases pittah.

So,the real culprit of acidity during upavaas is groundnut and green chillies which we put in in khichadi.

They increases pittah and eating khichadi on empty stomach whole day further by evening or next next day causes all pittha diseases .

So on day of fasting we should eat light food as well food which decrease PITTAH like sabudaana kheer, milk and fruits. They nourish  our body , are light to digest and decrease PITTAHas well.

So answer to – How to do upvaas is .

  • Do meditation as much time possible
  • Eat light food
  • Eat PITTAH shamak food ie food which decreases pittah .

So science behind upvaas is “ Give break to digestion and meditate”.

So lets TAKE A BREAK

Like how we take Sunday off ….do our pending work, cleaning and relax so that we become refreshed for next week work.

Sameways ,we should give our mind and body a break so that they get purified ,revived and ready to work the next week .

So lets start fasting scientifically atleast once a week.

Till next blog….meditate and fast

Stay Healthy, Stay Blessed.

Doing fast for mental peace (hEALTH maNTRA- 03) bLOG – 29

In last blog we discussed that doing fast /upwas keeps us healthy.

But if fast is not done properly then instead of health we land up in diseases.

So let us understand first “What is the real meaning of word “Upwas”ie fasting ?

Upwaas means….Up – Inside and Vaas-Going

Upvaas means “Going inside ourself and meditating on internal power/God/Aatma.

Almost all the upvaas of the year come in these four rainy months of CHATURMAAS.

WHY?

Because science was told in the form of dharma for everyone to follow and remain healthy.

Dharma says that Lord Vishnu goes in deep “Yognidra”in these four months.

It symbolically initiates us to start doing meditation.

In ancient days , in rainy season not much of outside work used to be there for people so sitting at home people would become idle and will eat more and fall sick or become lazy.

To avoid this, it was told by Dharma that do fasting and meditation.

As fasting keeps us alert and healthy and thus helps in meditation.

Following dharma people started doing upvaas and remained healthy as well achieved mental peace by meditating.

So the actual motto behind fasting was to achieve mind peace through meditation but we don’t do all this during fasting .

We just hurriedly  visit temple ,take  darshan and eat heavy upwaas varieties.

We neither meditate in house nor in temple .

So with time real motto of upwaas is forgotten.

Let us revive the science behind fasting .

On the day of fast, let’s start meditating for sometime, so gradually by the end of Chaturmaas , by meditating with fasting , we would achieve fruits of mental peace.

So hope you fast doing upwaas with meditation in this chaturmaas and achieve MENTAL PEACE.

In our next blog, we will discuss how to do Upwaas / Fasting without falling sick.

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Till then Stay Healthy, Stay Blessed.

मनशांती के लिए उपवास करना चाहिए ? (आरोग्य मंत्र – ०३) – Blog – 27

                     

    

घरेलु नुस्को मे हम निरोगी रहेने के अलग अलग नुस्को की जानकारी देते है |

पिछ्ले नुस्का नं ६ मे हमने जाना की “चातुर्मास मे उपवास करने से हम निरोगी राते है “

इसलिए साल के सारे उपवास इन चार महीनों मे आ जाते जैसे – आषाढ़ी एकादशी,अंगारिका चतुर्थी , श्रावण सोमवारआदि |

पर अगर हमे उपवास करने का सही तरीका पता नही हो तो उपवास करके हम निरोगी होने की जगह ज्यादा बीमार पड़ते है ?

तो आज का शुक्रवार घरेलू नुस्का नं ७ है

  “उपवास कैसे करना चाहिए ?”

पहले जानते है “उपवास का मतलब क्या है ?

उप याने – अंदर….वास याने – रहना

उपवास याने अपने “अंदर वास करो

याने अपने अंदर जो शक्ति /आत्मा /भगवान उसके अंदर आत्मचिंतन करो |

इसलिए  ऐसे  माना जाता है, भगवान विष्णुजी इन चार महिने योगनिद्रा मे चले जाते है |

इससे शास्त्र को सूचित करना है कि इन चार महीनो मे आप भी आत्मचिंतन करो |

पुराने जमानो मे बारिश के मौसम मे बाहर के काम ज्यादा नहीं होते थे |

तो घर मे बैठकर ज्यादा आत्मचिंतन करो | परघर मे बैठकर लोगो ने भारी ज्यादा अन्न खालिया तो लोग बीमार पड़ेंगे और भारी अन्न खाया तो नींद ,आलस आता है ,आत्मचिंतन नही होता |

इसलिए शास्त्र ने धर्म के नुसार बताया है की उपवास करो |

तो अच्छे से आत्मचिंतन होने लगेगा |

तो उपवास का सही उददेश है मन की शांती या आत्मचिंतन |

पर ऐसा उपवास तो हम नही करते ——–हम भीड़ मे जल्दी जल्दी मे मंदिर जाकर दर्शन करके आ जाते है —– ना मंदिर मे आत्मचिंतन करते है न घर मे नामस्मरण ——-सही मायने मे “मन शांती”के लिए उपवास करना चाहिए ?

उपवास के दिन ज्यादा से ज्यादा आत्मचिंतन मे बिताना चाहिए इससे मन शांत और निरोगी होता है शरीर भी शांत और निरोगी रहता है ?

तो अगले विडिओ मे हम जानेंगे शरीर निरोगी रखने के लिए उपवास कैसे करना चाहिए ?

तब तक के लिए —— उपवास करो और निरोगी रहो |

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